Monday 6 March 2017

निर्दोष

पाप सभी करते हैं,
और उनकी भरपाई भी,
इसी जन्म और इसी युग में,
इसकी सज़ा है मिलती । 

मैं एक २८ साल की लड़की हूँ,
इस दुनिया से उतनी वाक़िफ़ नहीं,
क्या गलत है और क्या सही,
इन बातों की मुझे इतनी समझ नहीं । 

मैं जाती हूँ रोज़ दफ्तर,
मिलते हैं यहाँ विभिन्न किस्म के लोग,
सब अपने काम में व्यस्त,
फैला है यहाँ प्रगति का रोग ।

हर शाम बेसब्री से,
 घर जाने का करती थी इंतज़ार,
कुछ बातें माँ से कहती,
और बातें उनसे छुपाती ।

एक दिन, मुझे कोई मिला,
वह दफ्तर में काम करता था,
उसने मुझसे कई बार किया था इज़हार,
कि वह करता था मुझसे प्यार । 

मगर मैंने उसे मना कर दिया,
और वह नाराज़ हो गया,
उसने मुझे मनाया,
मगर मैंने उसे भाव नहीं दिया । 

मैं सड़कों पर चल रही थी,
यूँ ही एक दिन,
वह आया मेरे पीछे,
और मेरे लिए वह घड़ी थी मुश्किल ।

वह कह रहा था बार-बार,
कि उसे मुझसे था प्यार, 
 और जैसे ही मैंने मना किया,
वह मेरे चेहरे पर तेज़ाब फेंक कर भाग गया ।

मैं रो रही थी ज़ोर से,
मगर वह न सुना,
वह बच गया पुलिस से,
और कबूल नहीं किया अपना गुनाह । 

मैं  निर्दोष थी,
मेरा चेहरा पूरी तरह जला हुआ था,
मैं उस घटना को कैसे भूलूँगी?
हर पल वह है याद, जब कभी देखती हूँ मैं आईना ।

उसने कभी माफ़ी भी नहीं माँगी,
मेरी ज़िन्दगी उसने बर्बाद की,
ऐसे लोग निर्दोष बच जाते हैं,
और अपनी ज़िन्दगी मज़े से जीते हैं ।

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